बुधवार, 31 अगस्त 2016

गणेश जी को किसी भी शुभ कार्य करने से पहले क्यों पूजा जाता है

हिन्दूधर्म में किसी भी शुभकार्य को शुरु करने से पहले गणेशजी की पूजा करना जरुरी माना गया है। चाहे वह किसी भी तरह का कार्य हो। इन्हें कई नामों सें पुकारा जाता है जैसे कि विघ्नहर्ता, गणपति, गजानन, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, सुमुख आदि नामों से जाना जाता है। इन नामों के स्मरण करने मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते है और घर में सुख-शांति आती है। गणेश जी को प्रसन्न करना बहुत  ही आसान है , लेकिन इसके लिए आपको सच्चें मन से गणेश जी की  पूजा करनी होगी।




हमारे मन में उठने वाले सवाल


जब भी आप यह देखते होंगे कि देवताओं में से गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है तो आपके मन में एक बार तो यह बात जरुर आती ही होगी कि आखिर सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा क्यों होती है और देवी-देवताओं की क्यों नहीं ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है। आज की इस कथा में हम आपके इस प्रश्न का ही जवाब देंगे और साथ ही साथ आपको बताएँगे कि सबसे पहले गणपति क्यों पूजे जाते हैं, गणेश जी ने पृथ्वी की परिक्रमा कैसे पूरी की, गणेश जी की सवारी क्या है, कार्तिकेय की सवारी क्या है आदि।


सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा क्यों की जाती है ?


गणपति को विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धी का स्वामी कहा जाता है। इनका स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है। गणेश का मतलब है गणों का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान व कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न-बाधा न पहुंचाएं, इसलिए सर्वप्रथम गणेश-पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है।


गणेश कथा :-

 

 

गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा किये जाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है इस कथा के अनुसार सृष्टि के आरंभ में जब देवताओं में यह प्रश्न उठा कि प्रथम पूज्य किसे माना जाए ( सबसे पहले  किसकी पूजा की जाये ), तो सभी देव अपने आपको महान बताने लगे।  अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव को निणार्यक बनाने की सलाह दी और सभी देवतागण भगवान शंकर के पास जा पहुँचे। शिव ने सोच-विचारकर एक प्रतियोगिता आयोजित की और कहा जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेंगे, वे ही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे। यह सुनते ही सभी देवताओं में दौड़ा- दौड़ मच  गयी। कोई हाथी पर सवार हुआ तो कोई घोड़े तो कोई रथ पर। सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा लगाने हेतु पुरे वेग से चल पड़े। सभी ये कोशिश करने लगे कि मैं पथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले लगा लूँ। अब बस वहाँ पर अकेले गणेश जी खड़े रह गए और सोचने लगे कि एक तो मेरा भारी भरकम शरीर ऊपर से मेरा वाहन ठहरा चूहा। वे सोचने लगे कि मेरा चूहे पर बैठ कर दौड़ना व्यर्थ है क्यूंकि चूहा इतने सरे पशु-पक्षियों से आगे नहीं जा सकता। कुछ इस तरह की बातें सोचते सोचते ही उन्हें एक युक्ति (विचार) सूझी और वे तुरंत कूदकर अपने वाहन मूषक पर बैठ गए  सीधे कैलास पर्वत की और दौड़े।
 कैलास पहुँचकर गणेश जी ने सीधे माता पार्वती का हाथ पकड़ लिया और विनय करते हुए कहा - माँ ! माँ ! आप झटपट  चलकर कुछ समय के लिए पिताजी के पास बैठिये न।
पार्वती जी ने  पुत्र की अकुलाहट को देखकर हँसते हुए पूछा क्या हुआ पुत्र ? तुम इतनी शीघ्रता में क्यूँ हो ?
गणेश जी  पहले चल कर बैठ तो जाइये। पिताजी तो ध्यान कर रहे हैं।  वे तो उठेंगे नहीं। आप ही चलिए न जल्दी।
फिर माता पार्वती पुत्र का आग्रह स्वीकार करके भगवान शंकर के समीप बायीं ओर जाकर बैठ गयीं। गणेश जी ने भूमि पर लेटकर माता पिता को प्रणाम किया और फिर अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात  बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। कुछ समय पश्चात कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और दर्प से बोले, 'मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं.'




शिव अपने चरणें के पास भक्ति-भाव से खड़े विनायक की ओर प्रसन्न मुद्रा में देखते हुए बोले, 'पुत्र गणेश तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर चुका है, इसलिए वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। ' कार्तिकेय इस बात से खिन्न होकर बोले, 'पिताजी, यह कैसे संभव है? गणेश अपने तो अपने वाहन मूषक पर बैठकर कई वर्षो में ब्रह्मांड की परिक्रमा कर पाएंगे। आप कहीं परिहास (मजाक) तो नहीं कर रहे हैं?' 'नहीं बेटे! गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से भी बढ़कर हैं। गणेश ने जगत् को इस बात का ज्ञान कराया है।'
इतने में बाकी सब देव आ पहुंचे और सबने एक स्वर में स्वीकार कर लिया कि गणेश जी ही पृथ्वी पर प्रथम पूजन के अधिकारी हैं।


गणेश जी से सम्बंधित इन लेखों को भी ज़रूर पढ़ें :


निवेदन :-
आशा है कि आपको यह "गणेश जी की यह कथा" जरूर पसंद आई होगी और अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो Plz इसे Facebook, Twitter and Google + पर  अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये जिससे कि वे भी इस पोस्ट का लाभ उठा सके और Please यहाँ नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताइयेगा की आपको यह कहानी कैसी लगी। 
धन्यवाद !

Receive AchchiDuniya's new articles by email.



Blog Post By Email

अगर आपको हमारी यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो आज ही हमारे Blog को Subscribe करें और हमारे इस ब्लॉग की हर एक नयी पोस्ट की सुचना अपनी ईमेल पर पाये। यह बिलकुल फ्री है।

Apni email id dal kar subscribe par click karne ke baad aapko ek email aayega usme ek link hogi, uspar click Karke confirm jarur kare.


Enter your email address to subscribe to Achchi Duniya's blog and receive their new articles by email.




Enter your email address:

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें