शनिवार, 18 नवंबर 2017

गणेश जी के जन्म की कहानी

गणेश जी के जन्म की कथा अत्यंत ही निराली होने के साथ-साथ यह काफी रोचक भी है। गणेश जी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र माने जाते हैं। वैसे तो हमारे वेदों, पुराणों में शिव से उत्पन्न कई पुत्र बताए गए हैं लेकिन  उनमें से गणेश और कार्तिकेय को ही प्रमुख माना जाता है। आज की इस पोस्ट में हम आपको यही बताएँगे की गणेश जी कौन हैं ?  गणेश जी किसके पुत्र हैं ? गणेश जी का जन्म कैसे हुआ ? गणेश जी की उत्पत्ति कैसे हुई ?  इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देते हुए  मैं आपको गणेश जी के जन्म की कथा बताऊंगा।




शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती से उनकी सखियों ने कहा कि हे माते भगवान शंकर के तो असंख्य गण है लेकिन उन पर हमारा कोई अधिकार नहीं चलता है अतः हमारे पास भी कुछ गण होने चाहिए। जिनपर हमारा पूरा अधिकार हो तो क्यों न आप ही कुछ गणों की रचना  दीजिये ना। उस वक्त तो पार्वती जी ने सखियों की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। परंतु इसके कुछ समय बाद ही एक बार पार्वती जी जब स्नान कर रही थीं अचानक से शंकर भगवान उसी वक़्त वहाँ आ गये यह देखकर पार्वती जी को बहुत लज्जा महसूस हुई। उसी समय पार्वती जी को अपनी सखियों की कही हुई बात भी याद आ गई। पार्वती जी ने अपने नहाए हुए उबटन (मैल) को छुड़ाया और उस उबटन से एक मूर्ति / पुतला बनाने लगीं और जब वह बन कर तैयार हो गया तो पार्वती जी ने उसमें अपनी शक्तियों से जान डाल दी और फिर वो पुतला ही बालक गणेश बन गया और फिर उसे कपड़े पहनाकर अपने स्नानागार के द्वार पर बिठा दिया, साथ ही उन्होंने उसे एक गण्ड भी थमा दिया। उन्होंने उसका नाम गणेश रखा और कहा कि देखो बेटा तुम मेरे पुत्र हो और जब तक मैं स्नान करके बाहर न आ जाउ तब तक कोई भी अन्दर न आने पाए।  उसके बाद माता पार्वती अन्दर नहाने चली गयीं तथा गणेश जी वहीं द्वार पर ही रहकर पहरा देने लगे। 
कुछ देर बाद शंकर जी वहां आ गए और अन्दर जाने लगे तो गणेश ने उन्हें बाहर ही रोक लिया। उन्होंने कहा कि अन्दर माता जी स्नान कर रही हैं और उन्होंने कहा है कि कोई भी अन्दर न आए। यह सुनकर शंकर जी बाहर ही रुक गए। तथापश्चात गणेश जी को वहां से हटाने भोलेनाथ के गण आए। तब गणेश जी ने कहा कि देखो मेरा विरोध करना तुम सब के लिए अच्छा नहीं है अत: तुम यहां से लौट जाओ। इस पर गणों ने गणेश जी से कहा कि हम भगवान शिव जी के गण हैं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम शिव जी के गण हो तो मैं पार्वती का गण हूं। बालक गणेश को काफी समझाने के बाद भी शिव जी के गणों को निराश होकर वहां से वापस लौटना पड़ा। इस पर शिव जी ने एक बार फिर अपने गणों से कहा कि वह बालक जो कोई भी है उसे वहां से हटा दो। इस पर गण दोबारा गणेश जी के पास गए और गणेश जी ने उन्हें फिर से घुड़क दिया। यह शोर सुन पार्वती जी ने अपनी सखियों से कहा कि देखो तो जरा कि बाहर क्या चल रहा है। फिर सखियाँ बाहर की स्थिति देखकर गयी और पार्वती जी से कहा कि बालक गणेश ने शिव जी को बाहर ही रोक दिया है। पार्वती ने कहा कि चलो अच्छा है नहीं तो शंकर जी बिना बताए ही अंदर आ जाते थे। उधर गण फिर से वापस शिव जी के पास पहुँच गए और उनसे कहा कि प्रभु हमने उस बालक को बहुत समझाने का प्रयत्न किया किन्तु वह बालक तो बहुत ज्यादा हठी और उद्दंड है  किसी भी तरह वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा है इस पर शिव जी ने फिर से अपने गणों को आदेश दिया कि वह जो कोई भी हो उसे वहां से हटा दो और अगर जरुरत पड़े तो उससे युद्ध भी करो, ऐसा कहकर महादेव सांसारिक लीला करने लगे।

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शिव जी की आज्ञा से उनके गण निर्भय होकर गणेश जी से युद्ध करने चले गए  जी को चेतावनी दी इस पर गणेश जी ने कहा कि अब तुम मुझ अकेले का पराक्रम देखो। शिव जी के अनेक बहादुर गण भी गणेश जी का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए। गणेश जी ने सभी गणों को मारपीट कर वहाँ से भगा दिया। इस पर देवताओं ने शिव जी के पास जाकर युद्ध का कारण पूछा, तो शिव जी ने बताया कि स्नानघर के द्वार पर एक बालक बैठा हुआ है, उसके और वो मुझे अंदर नहीं जाने दे रहा है। इस पर ब्रह्मा जी बालक को समझाने गए, उन्हें देखकर गणेश जी क्रोध से भर गए और ब्रहमा जी के बहुत समझाने के बाद भी नहीं माने उलटे ब्रह्मा जी का अपमान भी कर बैठे । तब ब्रह्मा जी वहाँ से चले गये देवताओं ने जब यह समाचार शिव जी को सुनाया, तो शिव जी क्रोधित हो उठे। और गणेश जी को सजा देने के लिए वह जा पहुँचे और बालक गणेश से युद्ध करने लगे और गुस्से में आकर बालक गणेश का सिर काट दिया तब जाकर देवता व गण निश्चिंत हुए। किंतु जैसे ही इस घटना के बारे में पार्वती जी को पता चला तो जानकर पार्वती को बहुत क्रोध आ गया जब उन्होंने सुना कि देवताओं और गणों ने उनके पुत्र गणेश को मार दिया है तब उन्होंने निश्चय किया कि वो सभी का नाश करके प्रलय मचा देंगी। उन्होंने अपनी शक्ति से एक लाख शक्तियां उत्पन्न कर लीं और उन्हें प्रलय मचाने की आज्ञा दे दी। उन शक्तियों को देखकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि निराश हो गए और सभी देवतागण काँपने लगे । उन्हें लगा कि ये तो अकारण ही प्रलय मचा देंगी।
आखिर में सभी देवी, देवताओं, ऋषियों ने पार्वती जी से क्षमा माँगते हुए प्रार्थना की कि हे माते हमे ज्ञात नहीं था की गणेश आपका ही पुत्र है, हम सबका अपराध क्षमा करो, और कृपया अपना गुस्सा त्याग दो तथा इस प्रलय को रोक दो। बहुत अनुनय विनय के बाद उन सभी की प्रार्थना पर देवी चंडिका बोलीं अगर तुम मेरे पुत्र को जीवित कर दो तो मैं यह प्रलय रोक दूंगी। पार्वती जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने शिव जी से कहा भगवान वही करना चाहिए जिसमें सबका भला हो। तब शिव जी ने कहा कि हाँ एक उपाय है अगर हम बालक गणेश के धड़ पर किसी और का सिर लगा दें तो यह फिर से जीवित हो उठेगा और उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि तुम सभी उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो कोई भी सबसे पहले जो मिले उसी का सिर काट कर  ले आओ हम उसे गणेश के धड़ पर जोड़ देंगे और वह जीवित हो जाएगा। यह सुनकर सभी गण उत्तर दिशा की ओर चल पड़े । काफी चलने के बाद उन्हें एक  हाथी दिखाई दिया। वो उसके पास गए और उसी का सिर काटकर अपने साथ ले आए और कुछ सोच विचार करने के बाद शिव जी ने उस हठी के सिर को ही गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया गया और वो फिर से जीवित हो उठे और फिर शिव जी ने भी उन्हें अपना पुत्र मान लिया।



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